आजमगढ़:खबर का दिखा असर खबर छपने के बाद अधिकारियों व सफाई कर्मियों को अपने कर्तव्य की आई याद

रिपोर्ट:सुमित उपाध्याय

अहरौला/आजमगढ़:अहरौला के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बने सामुदायिक शौचालय की सफाई के लिए लोगों ने बार-बार अधिकारियों व सफाई कर्मियों से कहते रहे और चक्कर लगाते रहे लेकिन अहरौला के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर बने सामुदायिक शौचालय की सफाई नहीं किया जा रहा थी जिससे राहगीर व आसपास के दुकानदार जब सामुदायिक शौचालय में शौच के लिए जाते तो उस बदबू के कारण वहां से बाहर निकल जाते थे और सफाई कर्मियों को इसको साफ करने के लिए कहते थे लेकिन इस बात को नजरअंदाज करते हुए ना कोई भी सफाई कर्मी वहां पहुंचा न ही उच्च अधिकारियों के कान पर जु रेंगी जैसे ही कल शौचालय की खबर पेपर अखबारों में छपी तो उसके बाद अधिकारियों को अपने कर्तव्य की याद आई और आनन फानन में सफाई कर्मियों को भेज कर अहरौला सामुदायिक केंद्र पर बने सामुदायिक शौचालय की साफ सफाई करवाई जिससे आसपास के लोग शौचालय से आ रही बदबू से राहत की सांस लिए ।और शौच के लिए कही और नहीं जाएंगे शौचालय से अधिक बदबू आने के कारण आसपास के दुकानदार व राहगीर भी शौच में ना जाकर कहीं बाहर प्रसाधन क्रिया किया करते थे,सफाई से जुड़ा एक और मामला आस्था के लोग पर छठ के लिए जहां घाटों पर सफाई कर्मियों के अभाव से सफाई नहीं हो पाई उससे भी क्षेत्र के लोग व घाटों पर पूजा करने आई महिलाए काफी आक्रोशित दिखाई दी और उच्च अधिकारियों व सफाई कर्मियों को अपने कर्तव्य का पालन न करने का बात कही वहां पर आई महिलाओं ने कहा कि हम लोग खुद अपने घर से लोगों को भेजकर घाटों की साफ सफाई करवाई ताकि इस घाटों पर पूजा करने का कार्यक्रम हम लोग कर सके लेकिन इस साफ-सफाई के बावजूद भी उच्च अधिकारियों व सफाई कर्मियों के कान पर जू तक नहीं रेगा वहां पर महापर्व छठ का व्रत रखने वाली महिलाओं लोगों ने कहा कि अगर साफ सफाई करना ही नहीं है तो किस लिए सफाई कर्मी की नियुक्ति हो गई है इससे तो अच्छा है कि इस नियुक्ति को खत्म ही कर दिया जाए ताकि लोग स्वयं खुद पर निर्भर हो जाए और खुद से साफ सफाई का ध्यान रख लगे,लेकिन जब कभी भी उच्च अधिकारी के द्वारा अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर कोई कठोर कार्रवाई की जाती है तो उन कर्मचारियों के आगे उनका संगठन आ जाता है और उन अधिकारियों को तानाशाह वी तुगलक्की फरमान जैसे शब्दों का प्रयोग करके संबोधित करने लगता है जिससे उच्च अधिकारी भी उन संगठनों के दबाव में आकर किसी ठोस कार्रवाई को करने से बचने लगते है,आखिर ऐसे में जिम्मेदार कौन ?

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