आजमगढ़:जब मौलाना की चुप्पी बनी गरीबों की बेचैनी अमीरों की शान तो दहेज़ को लेकर क्यों नहीं जाएगी गरीबों की जान
Azamgarh:When the silence of the Maulana becomes the restlessness of the poor and the pride of the rich, then why will the poor not lose their lives due to dowry
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रिपोर्ट:रोशन लाल
आजमगढ़:जहाँ अमीर तबका ऐसे दहेज़ वाली शाही शादी को “काबिले तारीफ” बता रहा है, तो वहीं गरीबों के बीच मायूसी और असहायता की भावना गहराती जा रही है। लोगों का कहना है कि अब हर रिश्ता तय करते समय “फॉर्च्यूनर जैसी गाड़ी” की मांग आम हो जाएगी, जिससे गरीब परिवारों की बेटियों के लिए शादी करना और कठिन हो जाएगा। दिल चस्प बात तो यह है कि इस शादी मे जितने भी मौलाना शरीक होकर दावत खाये थे क्या उनमें से एक भी मोलबी दहेज़ की बगावत नहीं कर सकते थे। ऐसी हालत मे इन मौलानाओं की चुप्पी ही एक तरफ अमीरों की शान बन रहा है तो दूसरी तरफ गरीबों की जान लेरहा है।क्यों कि इस शादी के बाद आजमगढ़ में 9 जुलाई से लगातार बहस चल रही है कि क्या ऐसे दहेज और दिखावे समाज के लिए ज़हर नहीं बनते जा रहे? क्या हम ऐसे सामाजिक प्रदर्शन से उन गरीबों का हक नहीं छीन रहे हैं जो ईमानदारी से, सादगी से अपनी बेटियों की शादियाँ करना चाहते हैं?इस सादी से तो अब मौलवियों की चुप्पी भी सवालों के घेरे में आगयी है। क्यों कि जिन धार्मिक नेताओं का फर्ज़ समाज में समानता और सादगी को बढ़ावा देना होता है, उनकी खामोशी इस दिखावे के खिलाफ असहमति नहीं, बल्कि मौन सहमति की तरह देखी जा रही है।अब सवाल यह है कि क्या शादी दिखावे की होनी चाहिए या इंसानियत की?क्या अब भी समाज सादगी से शादी करने वालों को सम्मान देगा, या केवल गाड़ी और पैसा ही रिश्तों का पैमाना बनेगा?