आजमगढ़:श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़
Azamgarh: Crowd of devotees gathered on the second day of Shrimad Bhagwat Katha
रिपोर्ट:चन्द्रेश यादव
अतरौलिया/आजमगढ़। स्थानीय पूरब पोखरा रोड पर आयोजित संगीतमयी श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। इस दौरान कथा वाचक भागवता चार्य पंडित चंद्रेश दास जी महाराज, पचपेड़वा आश्रम ने कथा के दूसरे दिन धुंधकारी प्रेत का उद्धार ,महाराज परीक्षित को श्राप, श्री शुक्र देव भगवान को महाराज परीक्षित का कथा, सुक्र देव भगवान का आगमन तथा भगवान के अवतार लेने का कारण सुनाया । कथा श्रोताओं को सुनाया गया कि धुंधकारी एक ऐसा व्यक्ति था जिसने अपने जीवन में बहुत पाप किए थे, जिसके कारण मृत्यु के बाद वह प्रेत योनि में फंस गया। उसका भाई गोकर्ण ने उसके लिए विधिपूर्वक पिंडदान और श्राद्ध करवाए, लेकिन इससे उसकी मुक्ति नहीं हुई। धुंधकारी प्रेत बनकर अपने भाई के सामने विभिन्न रूपों में प्रकट हुआ और अपनी दुर्दशा बताई। गोकर्ण ने सूर्यदेव की तपस्या कर उनसे सलाह ली, तब पता चला कि धुंधकारी का उद्धार केवल श्रीमद्भागवत कथा सुनने से ही संभव है। गोकर्ण ने भागवत कथा का आयोजन किया, जिसमें धुंधकारी ने सात दिनों तक कथा सुनी और मनन किया। सातवें दिन उसकी प्रेत योनि से मुक्ति हुई और वह दिव्य स्वरूप में प्रकट होकर भगवान श्रीकृष्ण के पार्षद बन गया। एक दिव्य विमान आया और वह उसमें बैठकर बैकुंठ धाम को चला गया। कथा में आगे बताया गया कि राजा परीक्षित एक बार शिकार के दौरान भूखे-प्यासे ऋषि शमीक के आश्रम पहुंचे। ऋषि ध्यान में लीन थे और उन्होंने राजा की बात नहीं सुनी। क्रोधित होकर परीक्षित ने मृत सांप को उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया। यह देखकर ऋषि शमीक के पुत्र, ऋंगी ऋषि, को बहुत क्रोध आया और उन्होंने राजा परीक्षित को श्राप दिया कि सातवें दिन तक्षक नाग उसे डस लेगा। जब राजा को श्राप का पता चला, तो उन्होंने इसका स्वागत किया और सात दिन भागवत कथा सुनकर भगवान की भक्ति में लीन हो गए। सातवें दिन तक्षक नाग ने उन्हें डस लिया, लेकिन भागवत कथा के प्रभाव से उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ।
शुक्र देव भगवान का आगमन कथा के अनुसार, वे महर्षि वेद व्यास के अयोनिज पुत्र थे, जो बारह वर्ष तक माता के गर्भ में रहे। कथा में बताया गया है कि भगवान शिव पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे, तब पार्वती के सो जाने पर वहां एक शुक (तोता) ने हुंकार भरी। शिवजी ने उसे मारने के लिए त्रिशूल छोड़ा, जिससे वह शुक तीनों लोकों में भागा और अंततः व्यास जी के आश्रम में जाकर उनकी पत्नी के गर्भ में प्रवेश कर गया। बारह वर्ष बाद भगवान श्रीकृष्ण के आश्वासन से वह गर्भ से बाहर निकला और वेद, उपनिषद, दर्शन व पुराणों का ज्ञान लेकर बाल्यावस्था में ही तपस्या के लिए वन चला गया। श्रीमद भागवत कथा सायं 7:00 बजे से रात्रि 10:00 बजे तक सुनाई जा रही है जिसमें हजारों की संख्या में दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं और श्री भागवत कथा का सोपान कर रहे हैं। भागवत कथा के आयोजक गणेश अग्रहरि द्वारा सनातन परंपरा को जीवंत रखने के लिए जनता जनार्दन के लिए कथा स्थल पे अच्छी व्यवस्थाएं दी गई है।