राम पुनरागमन

रज-रज कण-कण से वन्दन ,
हे राम तेरा अभिनन्दन है ।
पाप धुले हमे पून्य मिला ,
चरण रज मिट्टी चन्दन है ।।
आ रहे तू फिर से अवधपुरी ,
हम राजतिलक को हो आतुर ।
बनवास तुम्हारा खतम हुआ ,
अब नही कहीं कोई क्रन्दन है ।।

रज-रज कण-कण से वन्दन ,
हे राम तेरा अभिनन्दन है ।

जटायु तुझसे पहले आकर ,
तेरे आने का संकेत दिए ।
हनुमत भी आने को आतुर ,
अवधपुरी तेरा निकेत हिये ।।
न सुर न तान तेरा भजन करूँ ,
गाऊँ तू मेरा स्पन्दन है ।
रज-रज कण-कण से वन्दन ,
हे राम तेरा अभिनन्दन है ।।

सरयू की लहरें कल-कल से ,
तेरा चरण पखारन चाह रही ।
चरण पादुका बैठ सिंहासन ,
बस भार उतारन छाह सही ।।
वह भरत निहारे पथ तेरे ,
आने को मेरे रघुनन्दन है ।
रज-रज कण-कण से वन्दन ,
हे राम तेरा अभिनन्दन है ।

पौष शुक्ल द्वादसी तिथि ,
उर अन्तस् तुझे बसाने को ।
यह धन्य भाग्य जो उदित हुआ ,
दिवा चन्द्रवार हरषाने को ।।
तुझे पाकर मन पुलकित होगा ,
न कहीं कोई अब बन्धन है ।
रज-रज कण-कण से वन्दन ,
हे राम तेरा अभिनन्दन है ।

कोई शेष नही मन्थरा धरा ,
जो है अनुताप हिय में लेकर ।
अब नही कैकेयी भरमेगी ,
दृग अश्रुपूरित तुझे वन देकर ।।
मणि की इच्छा भी जान प्रभु ,
जो कभी त्वरण कभी मन्दन है ।
रज-रज कण-कण से वन्दन ,
हे राम तेरा अभिनन्दन है ।

रघुबंशमणि दूबे
टीकर , देवरिया
११ जनवरी २०२४

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