आधुनिक भारत में पहली बार कुल औसत घरेलू व्यय में खाद्य वस्तुओं का हिस्सा आधे से भी कम हो गया
The share of food commodities in total average household expenditure fell by less than half for the first time in modern India
नई दिल्ली: भारत के खपत के तरीके में पिछले कुछ समय में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में खाद्य वस्तुओं की कुल घरेलू खर्च में हिस्सेदारी में बड़ी कमी देखने को मिली है। एक सरकारी नोट में यह जानकारी सामने आई।प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहाकार परिषद (ईएसी) की ओर से ‘भारत की खाद्य खपत और नीतिगत निहितार्थों में परिवर्तन’ शीर्षक वाले नोट में कहा गया कि आधुनिक भारत (आजाद भारत) के इतिहास में यह पहली बार है, “जब कुल औसत मासिक घरेलू खर्च में खाद्य वस्तुओं की हिस्सेदारी घटकर आधे से भी कम रह गई है।”
“खाद्य वस्तुओं में भी शहरी और ग्रामीण इलाकों में भी अनाज पर होने वाले खर्च में कमी देखने को मिली है।”
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि शहरी और ग्रामीण इलाकों में अंतिम 20 प्रतिशत परिवारों के कुल घरेलू खर्च में खाद्य वस्तुओं पर खर्च में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। यह सरकारी योजनाओं की प्रभाव को भी दिखाता है। सरकार की ओर से सभी राज्यों में बड़ी संख्या में लोगों को मुफ्त अनाज दिया जा रहा है। इसका सबसे बड़ा फायदा देश के अंतिम 20 प्रतिशत परिवारों को मिल रहा है।अनाज पर खर्च कम होने के कारण अब परिवारों की ओर से अन्य खाद्य वस्तुओं जैसे दूध, दुग्ध उत्पाद, ताजे फल, अंडे, मछली और मीट पर खर्च कर पा रहे हैं।प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत सरकार की ओर से 80 करोड़ गरीब लोगों को निशुल्क अनाज दिया जा रहा है। इसका सबसे ज्यादा फायदा गरीब लोगों को मिल रहा है।नोट में कहा गया कि कुल घरेलू खर्च में खाद्य वस्तुओं की हिस्सेदारी में आए बदलाव का कृषि नीति और देश की स्वास्थ्य और पोषण नीतियों पर प्रभाव पड़ता है। भारत की खपत में आए इस बदलाव का भविष्य में सीपीआई कैलकुलेशन के तरीके पर भी होगा।