Deoria news, शरद पूर्णिमा का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व, पंडित विनय मिश्र

शरद, पूर्णिमा पर विशेष

शरद पूर्णिमा का धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व, पंडित विनय मिश्र।

सनातन संस्कृति में अश्विन मास की पूर्णिमा का अपना विशेष महत्व है। इसे शरद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा को आनंद व उल्लास का पर्व माना जाता है। इस पर्व का धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व भी है।ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान शकर एवं माँ पार्वती कैलाश पर्वत पर रमण करते हैं, तथा संपूर्ण कैलाश पर्वत पर चंद्रमा जगमगा जाता है।
भगवान कृष्ण ने भी शरद पूर्णिमा को रास-लीला की थी, तथा मथुरा-वृंदावन सहित अनेक स्थानों पर इस रात को रास-लीलाओं का आयोजन किया जाता है। लोग शरद पूर्णिमा को व्रत भी रखते हैं, तथा शास्त्रों में इसे कौमुदी व्रत भी कहा गया है।
लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था।इस प्रक्रिया से उसे पुनर्यौवन शक्ति प्राप्त होती थी।शरद पूर्णिमा की रात में 10 से मध्यरात्रि 2 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।मान्यताएं एवं वैज्ञानिक कारण पूर्णिमा को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है जिससे चंद्रमा के प्रकाश की किरणें पृथ्वी पर स्वास्थ्य की बौछारे करती हैं। इस दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष प्रकार के लवण व विटामिन होते हैं।कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से नाग का विष भी अमृत बन जाता है।ऐसी भी मान्यता है कि प्रकृति इस दिन धरती पर अमृत वर्षा करती है।एक अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है।इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। चांदी पात्र की अनुपस्थिति में मिट्टी की हांड़ी में खीर बनाना चाहिए । इस खीर में हल्दी का उपयोग निषिद्ध है।
प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 बजे से 2 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है।
शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा का पूजन कर भोग लगाया जाता है, जिससे आयु बढ़ती है व चेहरे पर कान्ति आती है , एवं शरीर स्वस्थ रहता है।शरद पूर्णिमा की रात में वैद्यों द्वारा जड़ी बूटियों से औषधि का निर्माण किया जाता है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को तैयार की गई औषधि अचूक रामबाण होती है।चंद्रमा की रात में खुले मुंह के बर्तन में खीर पकाई जाती है जिसमें चंद्र किरणों का समावेश होने से अमृत रूपी यह खीर अनेक रोगों के लिए दवा का काम करती है।
इस खीर को प्रातः काल स्नान करने के बाद लेकिन सूर्योदय से पहले खाना चाहिए, तभी उसका लाभ मिलता है।
आपका शरीर स्वस्थ्य रहे आप दीर्घायु हों आपका जीवन मंगलमय हो प्रभू की कृपा अनवरत आप पर बनी रहे।

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